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करुण रस किसे कहते हैं | Karun Ras Kise Kahate Hai

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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का अपनी बेबसाइट Hindi Learnings पर। आपको इस वेबसाइट पर शिक्षा से जुड़े हुए लेख पढ़ने को मिलते हैं क्योंकि इस वेबसाइट का लक्ष्य है लोगों को घर बैठे अच्छी शिक्षा का ज्ञान प्राप्त कराना। अगर आप इस वेबसाइट पर दिए गए लेख को सही ढंग से पढ़ते हैं तो आपको किसी भी एग्जाम में कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा दोस्तों आज के इस लेख में हम करुण रस किसे कहते हैं के बारे में जानेंगे।

करुण रस किसे कहते हैं

करुण रस का स्थायी भाव है शोक, करुणा के रस में स्वयं का विनाश, या स्वयं का वियोग, द्रव्य का नाश, और सदा दूर रहने या प्रेमी से अलग होने से उत्पन्न होने वाला दुःख या पीड़ा है ऐसे भाव को ही करुणा रस कहा जाता है। वैसे वियोग, श्रृंगार रस में भी दु:ख का अनुभव होता है, लेकिन दूर जाने वाले से मिलन की आस रहती है।इसका मतलब यह हुआ कि जहां दोबारा मिलने की कोई उम्मीद नहीं है, वहां करुणा है। इसमें छाती पीटना, सांस फूलना, रोना, जमीन पर गिरना आदि का भाव व्यक्त किया जाता है।

दूसरे शब्दों में हम ये भी कह सकते हैं कि किसी प्रियजन की लंबी जुदाई या मृत्यु के कारण उत्पन्न होने वाले दुःख को करुणा रस कहा जाता है।

करुण रस के उदाहरण

“मणि खोये भुजंग-सी जननी, फन-सा पटक रही थी शीश,

अन्धी आज बनाकर मुझको, क्या न्याय किया तुमने जगदीश।

अभी तो मुकुट बंधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ,

खुले भी न थे लाज के बोल, खिले थे चुम्बन शून्य कपोल।

हाय रुक गया यहीं संसार, बिना सिंदूर अनल अंगार

वातहत लतिका वट सुकुमार पड़ी है छिन्नाधार।।

राघौ गीध गोद करि लीन्हो

नयन सरोज सनेह सलील

सूची मनहुँ अरघ जल दीन्हो”

करुण रस के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी

भरतमुनि के अपने ‘नाट्यशास्त्र’ में प्रतिपादित आठ नाट्य रसों में करुण रस को श्रृंगार और हास्य के बीच और रौद्र से पहले गिना गया है। ‘रौद्रत्तु करुनो रस’ कहते हुए ‘करुण रस’ की उत्पत्ति ‘रौद्र रस’ से मानी जाती है और इसका चरित्र कपोट और देवता यमराज के सदृश बताया जाता है। भरत ने करुण रस का विशेष वर्णन करते हुए अपनी स्थायी अनुभूति को ‘दुःख’ नाम दिया है। और इसकी उत्पत्ति को श्राप, दुख, विनाश, क्षमता का विनाश, वध, बंधन, विदर्भ यानि पलायन, दुर्घटना, व्यसन यानी आपत्ति आदि के योग से स्वीकार किया गया है। साथ ही आंसूपन जैसे अनुभवों का उपयोग करने के निर्देश भी दिए गए हैं। परिदेवन, विलाप, मुंह-अवशोषण, वैवर्ण्य, कांपना, सांस फूलना, स्मृति हानि आदि। फिर निर्वाण, जुनून, अपराधबोध, चिंता, आवेग, उत्पीड़न, भ्रष्टता, मोह, श्रम, वावर्ण्य, भय, विषाद, रोग, जड़ता, उन्माद, त्रासदी, आलस्य, मृत्यु, स्तंभ, वापथु, आंसू, वैमनस्य आदि। एक मूल्य के रूप में परिकलित।

निष्कर्ष

आज के इस लेख में हमने करुण रस किसे कहते हैं के बारे में जाना है, हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे द्वारा करुण रस किसे कहते हैं के बारे में जो जानकारी दी गयी है वो आपको समझ में आ गयी होगी अगर आप ऐसे ही हिंदी व्याकरण में कोई और प्रश्न जानना चाहते हैं है तो हमे कमेन्ट करके जरुर बताये हम जल्द ही उस विषय पर भी आर्टिकल को लिखेगे आप हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ शेयेर करे जिससे उनको भी ये जानकारी मिल सके हमारे साथ इस लेख में आखिर तक बने रहने के लिए आप का धन्यवाद।

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